सतलुज घाटी के सामुहिक पर्यावरण प्रभाव आंकलन हेतू किये गये जन-परार्मशों पर एक नज़र

हिमाचल प्रदेश सरकार ने पर्यावरण व वन मंत्रालय के निर्देश पर 2013-2014 में जल विद्युत परियोजनाओं के प्रभावों का आंकलन करने के लिये भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद् (ICFRE),देहरादून को नियुक्त किया। हिमाचल प्रदेश में सबसे पहले सतलुज घाटी का सामुहिक पर्यावरण प्रभाव आंकलन किया गया।   आंकलन के अंतिम प्रक्रिया के दौरान किन्नौर व स्पीति जिलों में 4 जगह स्थानीय लोगों से जन-परार्मश का आयोजन किया गया।

दिनांक 13 अगस्त 2014 को जिला किन्नौर के लिप्पा पंचायत में जन परार्मश हुआ। पैनल में दो सदस्यीय स्वतंत्र टीम के श्री डी सी खन्डूरी (पर्यावरण विशेषज्ञ) व रश्मि नय्यर (सामाजिक वेज्ञानिक) थे। प्रदेश शासन की ओर से ऊर्जा निर्देशालय के अधीशासी अभियन्ता दीपक जसरोटिया व स्थानीय प्रशासन की ओर से मुरंग व रारंग तहसील के तहसीलदार थे। और साथ ही जांगी, रारंग, आसरंग, लिप्पा गांव के जन-प्रतिनिधी व ग्रामीण मौजूद थे।

दिनांक 14 अगस्त 2014 को पूह पंचायत में जन-परार्मश का आयोजन किया गया ।जिसमें स्वंतत्र टीम के साथ-साथ पैनल में स्थानीय तहसीलदार, खण्ड विकास अधिकारी व ADM थे। नम्ग्या, नेसांग, खाब गांवों के जन-प्रतिनिधिओं के साथ-साथ ग्रामीण उपस्थित थे।

दिनांक 14 अगस्त 2014 को नाको गांव में भी जन-परार्मश किया गया जिसमें स्वतंत्र टीम के साथ नायाब तहसीलदार, यंगथंग-खाब परियोजना, चांगो-यंगथग परियोजना, लारा-सुमाता परियोजना प्रबन्धन की ओर से प्रतिनिधि भी पैनल में थे। साथ ही नाको, चांगो, यंगथंग,लीओ गांवों के जन-प्रतिनिधि व ग्रामीण मौजूद थे।

दिनांक 15 अगस्त 2014 को ताबो, जिला स्पीति में आयोजित की गई । जहां पैनल में स्वतंत्र टीम के साथ ADM काज़ा, यंगथंग-खाब परियोजना, चांगो-यंगथग परियोजना, लारा-सुमाता परियोजना प्रबन्धन की ओर से प्रतिनिधि भी मौजूद थे। ताबो, सुमरो, लरी गांव के प्रतिनिधि और ग्रामीण भी मौजूद थी।

  • सभी जगह लोगों द्वारा पैनल के सामने लगभग एक ही प्रकार के मुद्दे उठाये। जिनमें CEIA रिपोर्ट, सारांश व संस्तुतियों का हिन्दी रुपातंरण न होना, निश्चित समयावधि में रिपोर्ट के प्राप्त ना होने व जन-परार्मश के आयोजन के प्रसार-प्रचार में ढील होने पर सवाल उठाये। लेकिन जिनका जवाब पैनल द्वारा सटीक रुप से नहीं दिया गया, पैनल ने रिपोर्ट के हिन्दी रुपांतरण में तकनीकि शब्दों के अधिक उपयोग होने से कठिनता को देखते हुये अनुवाद के बारे में सोचा ही नहीं गया। पैनल ने आश्वासन दिया जहां तक सारांश व संस्तुतियों के हिन्दी अनुवाद की बात है उन्हें 15 दिन के भीतर सभी पंचायतों में भेज दिया जायेगा।
  • साथ ही सभी जगह लोगों ने रिपोर्ट और सारांश में भिन्नता, शुक्ला कमेटी की रिपोर्ट का CEIA रिपोर्ट में किसी प्रकार के जिक्र नहीं करने का पैनल से कारण भी पूछा, लेकिन पैनल के पास इन सवालों का जवाब नहीं था।
  • रिपोर्ट और सारांश में दिये गये “नो-गो-रिवर” व “ट्रांस हिमालया” शब्दों का क्या तात्पर्य भी सभी परार्मश बैठकों में पूछा गया लेकिन पैनल ने रिपोर्ट बनाने वाली टीम से आग्रह करने की बात की रिपोर्ट में इन शब्दों को सही तरह से परिभाषित करें।
  • जन-परार्मश किसी कानून के तहत न होने व रिपोर्ट तैयार करने वाली संस्थाओं के प्रतिनिधि और सरकारी महकमे के अधिकारियों के उपस्थित ना होने में भी सवाल उठाया लेकिन पैनल के पास इनका जवाब नहीं था। लिप्पा में हुई जन-परार्मश में स्थानीय लोगों ने सलाह दी की किन्नौर में दो जगह रिकांग पिओ और पूह में बड़ी जन-सभाओं का आयोजन किया जाय जहां रिपोर्ट तैयार करने वाली संस्थाओं के प्रतिनिधि और सरकारी महकमे के अधिकारियों की उपस्थित अनिवार्य हो पैनल ने सुझाव का स्वागत किया।
  • लोगों ने पूरानी बनी परियोजनाओं के प्रभावों का रिपोर्ट में जिक्र न होने में भी रोष जताया।
  • खाब में हुई जन-परार्मश में लोगों ने रिपोर्ट में परियोजना के निर्माण कार्य, सड़क निर्माण के दौरान होने वाले वायु प्रदुषण के बारे में जिक्र न होने में सवाल उठाया, साथ ही पहले बनी परियोजनाओं से पर्यावरण, जल स्रोतों, कृषि व बागवानी में किस प्रकार का बदलाव पाया गया है क्या इसका वर्णन रिपोर्ट में किया गया है लेकिन पैनल इन सवालों का जवाब देने में भी असर्मथ रहा। खाब में सामाजिक वैज्ञानिक रश्मि नैयर ने स्थानीय जनता के सामने में नये भू-अधिग्रहण कानून के तहत स्थानांतरित भूमि का मुआवजा 4गुना ज्यादा मिलने की बात की तो उपस्थित जनता ने निन्दा करते हुये किसी भी परियोजना के लिये किसी भी स्थिति में भूमि अर्जन नहीं करने पर बल दिया।
  • नाको में हुई बैठक के दौरान लोगों ने भूतकाल में घाटी में हुये भू-सख्लनों (पांगी, उरनी, पोवारी, नीगूलसेरी) के कारण में परियोजनाओं का योगदान होने पर ऊपरी किन्नौर जहां शून्य वनस्पति है, कमजोर, रेतीले पहाड़ों में परियोजनाओं का बनने का विरोध जताया,
  • ताबो में लोगों ने नाजूक भौगोलिक संरचना होने व चीन सीमा से निकट होने के कारण राष्ट्र-सुरक्षा की दृष्टी से किसी भी प्रकार की विकास परियोजना ना होने पर बल दिया, साथ ही अपनी संस्कृति व वन्यजीवों की रक्षा हेतू परियोजनाओं का विरोध किया। रश्मि नैयर ने ताबो को अनुसुचित क्षेत्र में होने के कारण वन अधिकार कानून के बारे में जानकारी देते हुये ग्राम सभा की मंजूरी होने को लोगों के लिये उपयोगी बताया। लोगों ने रिपोर्ट में परियोजनाओं द्वारा गोल्बल वार्मिगं व जलवायु परिवर्तन पर पड़ने वाले प्रभावों के आंकलन नहीं होने पर भी सवाल उठाये लेकिन पैनल जवाब देने में असर्मथ था।

सतलुज घाटी में 4 स्थानों में हुई जन-परार्मश में लोगों ने जन-परार्मश से पूर्व सरकार द्वारा की जाने वाली प्राथमिक कार्यवाही में ढील होने के कारण, किन्नौर में पूरानी परियोजनाओं के द्वारा पर्यावरण, स्थानीय संस्कृति, आजिविका, जल स्रोतों, वनों पर हुये दुष्प्रभावों को देखते हुये सर्वसम्मति के साथ जन-परार्मश का बहिष्कार के साथ-साथ जल विद्युत परियोजना व अन्य किसी भी प्रकार की विकास परियोजना का विरोध किया।

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अंतिम तिथि : 30 अक्टूबर 2014

हिमधरा द्वारा दिये गये ज्ञापन : Memo to MoEF HP Groups 090910

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