प्रेस विज्ञाप्ति : 17 दिसम्बर 2014 वायदा खिलाफ़ी के चलते ग्रामिणों ने जल विद्युत परियोजना को चेताया

पालमपुर के नजदीक स्पेडू गांव में बन रहे 4.5 मेगावाट के आवा प्रोजेक्ट के प्रभावितों ने आज प्रोजेक्ट के पावर हाउस साइट में जमा हो कर कम्पनी को उनके मध्य हुये करारनामे की शर्तें न निभाने के चलते चेतावनी दी। ब्यास की सहायक नदी आवा खड्ड पर इस परियोजना को सुभाष प्रोजेक्ट्स द्वारा बनाया जा रहा है। ग्रामीणों का आरोप है कि 2008 में कम्पनी व उनके बीच किये गये करारनामे की तीन मुख्य शर्तों का कम्पनी ने लगातार स्मरण कराने पर भी अब तक पालन नहीं किया है। कंडबारी गांव की कुहल के कोहली जोबन लाल का कहना है कि “परियोजना बनने से पहले इस इलाके में तीन कुहलें थी जिनसे 7 पंचायतों की जमीन सिंचित होती थी। परियोजना के निर्माण के चलते इनमें से दो कुहलें चधरुल व रंधुल में पानी नहीं है। परियोजना प्रस्तावकों ने वादा किया था कि वह इन दोनों कुहलों का पानी तीसरी कंडुल कुहल में डालने का इंतजाम करेंगें जिससे सिंचाई पर प्रभाव न पड़े”। उन्होनें अभी तक ऐसा नहीं किया है जबकि परियोजना बिजली बनाना चालू करने वाली है।

ननहार गांव की कुहल के कोहली जय किशन ने कहा कि “ प्रोजेक्ट द्वारा कंडुल कुहल को चौड़ा करने व उसकी लगातार मरम्म्त करवाने के वायदे का भी पालन नहीं किया गया है। उन्होंने हर वर्ष कुहल कमेटियों को दो माह के लिये दो कोहलीओं का मानदेय देने के वादे का भी पालन नहीं किया है।

पडियारखर गांव के कोहली सुरेश कुमार ने कहा कि हमनें परियोजना निर्माण की अनुमति इसी शर्त पर दी थी कि हमारी कुहलों में पानी लगातार चलता रहेगा। परन्तु अब कम्पनी के असहयोगी व्यवहार के चलते हमें पानी के लिये इनकी ओर देखना पड़ रहा है जो कि हमें मंजूर नहीं है। हम करीब 20 बार यंहा आ कर कम्पनी से गुजारिश कर चुके हैं लेकिन इन पर कोई असर नहीं पड़ा। अब हमनें इन्हें एक हफ्ते का अल्टिमेटम दिया है जिसके बाद हम आगे की कार्यवाही करेंगें। 19 तारीख को हम एस डी एम पालमपुर को भी इस बारे में ज्ञापन देंगे जो कि परियोजना के साथ किये गये हमारे करारनामे के सह-हस्ताक्षरी हैं। हमें डर है कि इस मामले में कम्पनी व प्रशासन के द्वारा ढील के चलते जमींदारों को भविष्य में पानी का संकट हो सकता है जिससे कानून व्यव्स्था पर असर पड़ सकता है।

गौरतलब है कि इस प्रकार कि स्थितियों में अक्सर प्रशासन व सरकार परियोजना प्रस्तावकों के आर्थिक हितो की रक्षा के लिये प्रभावित जनता के अधिकारों को नजरन्दाज करते हैं; ऐसे में अपने जायज अधिकारों की रक्षा कर रही जनता के सामने केवल लम्बा संघर्ष ही चारा रह जाता है।

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