हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिला में वन अधिकार कानून 2006, का तीन दिवसीय प्रशिक्षण

वनों पर लोगों के अधिकारों को सुरक्षित करता है वन अधिकार कानून, 2006

*उप मंडल संगडाह प्रशासन द्वारा आयोजित वन अधिकार कानून, 2006 पर तीन दिवसीय प्रशिक्षण कार्यशाला के अंतिम दिन संगड़ाह की 19 पंचायतें हुई शामिल!*  

*प्रेस नोट: 10 जनवरी 2023* | विकास खण्ड सँगड़ाह में वन अधिकार कानून 2006 से सम्बंधित तीन दिवसीय प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन प्रशासन, उप मंडल सँगड़ाह द्वारा व सिरमौर वन अधिकार मंच की सहभागिता के साथ किया जा रहा है. इस तीन दिवसीय कार्यशाला का संगड़ाह की 19 पंचायतों के प्रधान, सचिव, वन अधिकार समितियों के अध्यक्ष और सचिव के साथ साथ राजस्व और वन विभाग के लाइन अधिकारियों को प्रशिक्षण देकर हुआ अंत। 
*आज की प्रशिक्षण कार्यशाला में उप मंडल अधिकारी श्री सुनील कायथ, तहसीलदार श्रीमती प्रमिला धीमान और खंड विकास अधिकारी श्री चिराग शर्मा भी उपस्तिथ रहे.*
सिरमौर वन अधिकार मंच के गुलाब सिंह ने कहा कि *वन अधिकार कानून, 2006 की धारा 4(5) बेदखली से सुरक्षा का अधिकार देती है.* संगड़ाह तहसील की ग्राम पंचायत सताहन और भुटली मानल में भी कुछ लोगों को वन विभाग से बेदखली के नोटिस मील थे। जिन्हें भी नोटिस प्राप्त हुए उन्होंने वन अधिकार कानून के तहत दावा फॉर्म ‘क’ भरा और साथ ही अपनी आजीविका की वास्तविक ज़रूरतों के लिए प्राथमिक रूप से वन भूमि पर 13 दिसम्बर 2005 से पहले से निर्भर हैं उससे जुड़े साक्ष्य जोड़ कर अपनी वन अधिकार समिति को आगे की प्रक्रिया करने हेतू सौंपे। ऐसा करने से उनकी बेदखली रुकी और वहां की वन अधिकार समिति को DFO रेणुकाजी द्वारा जल्द से जल्द कानून के तहत प्रक्रिया पूरी करके अपने दावे उप मंडल स्तरीय समिति (SDLC) को देने का सुझाव दिया. आज सताहन के करीबन 25 व्यक्तिगत दावे SDLC को सौंपे जा चुके हैं. गौर करने वाली बात है कि इस कानून के तहत सभी प्रकार की वन भूमि चाहे फिर वो नेशनल पार्क, वाइल्ड लाइफ सेंचुरी, रिज़र्व फारेस्ट ही क्यो न हो, पर वन अधिकारों का दावा किया जा सकता. 
हिमाचल प्रदेश में 2014 में वन अधिकार समितियों का गठन किया गया, जो राजस्व गांव स्तर पर हुआ. इसमें सबसे बड़ी समस्या कोरम पूरा करने में सिरमौर में देखने को मिल रही है. जब कि कानून के तहत वन अधिकार समितियों का गठन उप मुहाल, उप गांव, टोला, पत्ती स्तर पर भी किया जा सकता है जो पंचायत प्रधान और पंचायत सचिव की अगुवाहि में ग्राम सभा प्रस्ताव के रूप में होता है. इसमें तय किया जाता है कि एक राजस्व गांव में कितनी वन अधिकार समितियों का गठन करना है. हमें आशा है कि इस प्रशिक्षण के बाद इस काम मे कोई बाधा नही आएगी, सिरमौर वन अधिकार मंच के धनीराम शर्मा ने कहा.
ग्राम पंचायत घाटो के वन अधिकार समिति अध्यक्ष श्री निका राम ने प्रशिक्षण में जुड़ने के बाद कहा कि ‘वैसे तो आज के प्रशिक्षण में 100 से अधिक प्रतिभागियों की संख्या अपेक्षित थी लेकिन उतने लोगो ने भागीदारी नही दी. इसका प्रमुख कारण यही है कि जिन वन अधिकार समितियों का चयन हुआ है, अधिकतर जगह वहां के लोगो को इस बात की जानकारी ही नही है कि इस समिति में अध्यक्ष, सचिव और सदस्य कौन है’. 

*उप मंडल अधिकार श्री सुनील कुमार जी ने अपने संबोधन में कहा कि यह एक बहुत ऐतिहासिक कानून है जो ग्राम सभाओं और वन निवासियों को सशक्त करता है. इस कानून की जानकारी बहुत कम है लोगो को इसके लिए हम ये प्रशिक्षण करवा रहे हैं. प्रशासन और वन विभाग जिनकी भी इस कानून के लागू होने में ज़िम्मेदारी है उन्हें बढ़ चढ़ कर वन अधिकार समितियों के साथ काम करके अपनी ज़िम्मेदारी पूरा करना है। आखिर में उन्होंने सभी से कहा कि इस महत्वपूर्ण कानून को ज़्यादा से ज़्यादा लोग पढ़े और अपने अधिकार ले*
कार्यशाला में प्रशिक्षण देने आए हिमधारा पर्यावरण समूह से प्रकाश भंडारी ने संगड़ाह प्रशासन की इस पहल की सराहना करते हुए कहा कि इस तरह के प्रशिक्षण की ज़रूरत पूरे सिरमौर जिले में है। हम आशा करते हैं कि जिले के बाकी उप मंडल प्रशासन भी इस तरह की पहल करके लोगो को कानून के प्रति जागरूक करेंगे.
वन अधिकार कानून को भारतीय संसद द्वारा 2006 में पारित किया गया. यह कानून वनों पर आश्रित अनुसूचित जनजाति व अन्य परम्परागत वन निवासियों के वन भूमि पर व्यक्तिगत, सामुदायिक, वन संसाधन व विकास का कानूनी अधिकार सुनिश्चित करता है। गौरतलब है कि जिला सिरमौर की अधिकांश आबादी अन्य वन निवासी की श्रेणी में आती है।

News update

Post Author: Admin