प्रेस नोट 9 जुलाई 2016 : धर्मशाला में झुग्गियां हटाने के सन्दर्भ में फैक्ट फाइंडिग टीम ने राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग को अपनी रिर्पोट सौंपी, विस्थापित लोग जिलाधीश से पुर्नवास के सम्बन्ध में मिले

धर्मशाला में 35 साल पुरानी झुग्गियों के हटाये जाने की जानकारी मिलते ही दिल्ली की वुमेन अंगेस्ट सेक्सुअल वायलेंस एंड स्टेट रिप्रेशसन और दिल्ली सोलिडेरटी ग्रुप ने धर्मशाला में 27-28 जून को बस्ती उजाड़ने के दौरान मानव अधिकारों के दमन सम्बन्धित तथ्यों की खोजबीन की। टीम ने धर्मशाला में आकर प्रभावित समुदाय, बस्ती के उजाड़ने से सम्बन्धित विभागों के अधिकारिओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं से मुलाकात की। राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग को भेजी गयी रिपोर्ट में टीम ने बस्ती के उजाड़ने के “अमानवीय असंवेदनशील और गैर जिम्मेदाराना कृत्य” को लेकर आपत्ति प्रकट की है। रिर्पोट में यह बताया गया है की स्थानीय नगर निगम व जिला प्रशासन कानूनी तौर पर विस्थापित लोगों की वर्तमान स्थिति के लिये जवाबदेही हैं। रिर्पोट के अनुसार 35 साल पूरानी रिहाइश को प्रशासन ने बस्ती का दर्जा नहीं दिया और ना ही कभी बस्ती में रह रहे लोगों की दयनीय स्थिति को सुधारने के लिये किसी प्रकार के कदम उठाये। जिससे यह लगता है की बस्ती में रह रहे लोगों को किसी प्रकार की पहचान न देकर केवल उनके द्वारा किये गयी मेहनत का उपयोग करना था। फैक्ट फाइंडिग टीम निष्कर्स निकालती है की शासन के चरान खड्ड में बस्ती हटाने के कृत्य में हिमाचल प्रदेश बस्ती कानून(2005) के मानवीय प्रावधानों की अनदेखी करी गई है। टीम ने नगर निगम पर सुप्रीम कोर्ट के द्वारा दिये गये आदेश का उल्लंघन किया है जिसमें मानसून में बस्ती हटाने से सम्बन्धित निर्देश दिये गये हैं। बंबई फुटपाथ में रहने वाले लोगों के मामले में यह निर्णय एक ऐतिहासिक फैसला है जिसमें जीवन और आजीविका के संवैधानिक अधिकार को महत्ता दी गयी है। बस्ती को उजाड़ने का कृत्य अर्न्तराष्ट्रीय दिशा-निर्देशों का भी उल्लंघन करता है इन दिशा-निर्देशों पर भारत भी हस्ताक्षरकर्ता है।

टीम ने प्रशासन द्वारा बस्ती में रह रहे लोगों पर “बाहरी गन्दे लोग”, “नशेड़ी” , “अपराधी” आदि लाच्छ्न व दोष लगाने पर भी आपत्ति जतायी है। चरान खड्ड बस्ती में रहने वाले कामगार लोग सामाजिक व आर्थिक सुरक्षा के बिना शहर के लिये अपना श्रम उपलब्ध करते हैं। फैक्ट फाइंडिग टीम ने कुछ अधिकारियों पर उजाड़े गये समुदाय के प्रति भेदभाव व अवमानना की घोर निन्दा करी है। रिपोर्ट के अनुसार “ ये व्यक्ति भूल गये हैं, लोक सेवक होने के नाते, वे कर्तव्य बाध्य हैं की आधिकारिक क्षमता में काम करते समय  सामाजिक पूर्वाग्रह से अलग खड़ें रहना चाहिये”। फैक्ट फाइंडिंग टीम ने अलग-अलग दस्तावेजों का भी निरक्षण किया और नवगठित धर्मशाला नगर निगम के कामकाज के तरीकों पर गम्भीर सवाल उठाये, जिसे(नगर निगम) स्मार्ट सिटी मिशन के तहत वित्त पोषण प्राप्त करने में एक प्रारंभिक सफलता मिल चुकी है। रिर्पोट के अनुसार स्मार्ट सिटी का प्रस्ताव नगर निगम के गठन होते ही पारित कर दिया गया, यह प्रक्रिया जल्दीबाजी में अधुरे आंकड़ों के साथ करी गयी है जिसमें क्षेत्र की जनसंख्या के विभिन्न भागों की जरुरतों व प्राथमिकताओं पर कोई समझ नहीं है। टीम ने प्रशासन से तुरंत ही उजाड़े गये लोगों को तत्काल सहायता देने की मांग करी है जिससे प्रभावित लोगों का जीवन पुन: से सही तरीके से चल सके।

साथ ही प्रभावित लोगों ने ‘चरान खड्ड बस्ती पूर्नवास समिति’ का गठन किया है जो प्रशासन से पुर्नवास को लेकर संवाद करेगी। समिति के लगभग 20 सदस्य जिलाधीश कांगड़ा व संयुक्त आयुक्त नगर निगम धर्मशाला से मिले और पुर्नवास को लेकर तुरंत कार्यवाही करने के लिये ज्ञापन सौंपा। “जिलाधीश ने संयुक्त आयुक्त नगर निगम को मामले की जांच करने के निर्देश दिये हैं। और दोनों ने ही आश्वासन दिया है की जल्द ही पुनर्वास को लेकर कार्यवाही होगी। हम इसी संदर्भ में अगले हफ्ते दोबारा से उन्हें मिलेंगे” नाजूकी देवी, चरान खड्ड बस्ती पुर्नवास समिति।

जारीकर्ता :
चरान खड्ड बस्ती पुर्नवास समिति
कांगड़ा नागरिक अधिकार समुह
फैक्ट फाइंडिग टीम की रिर्पोट
समिति द्वारा दिया गया ज्ञापन

Press Note 9 July 2016: Fact finding team submits report to NHRC on Dharamsala Slum Eviction matter; Affected people meet DC for rehabilitation

In response to disturbing information about the eviction of a long-standing slum settlement in Dharamshala, WSS (Women Against Sexual Violence and State Repression) and Delhi Solidarity Group on 27-28 June 2016 carried out a fact-finding mission to investigate and ascertain if violations of law and human rights had taken place. The team visited Dharamshala and met with the affected community, concerned officials and civil society activists in Dharamshala and Palampur. The report prepared by the team , which has been sent to the NHRC, condemns the eviction as “an inhuman, insensitive and irresponsible act.” The report points out that, as the local face of the state government, the municipal corporation and the district administration are legal duty-bearers who cannot sidestep their accountability for the welfare of citizens regardless of their economic or social status or their place of birth.

The report also points out that the authorities allowed 35 years to go by without notifying the area as a slum, and without making even token gestures towards improving the miserable living conditions. This suggests a deliberate attempt to render the residents invisible and deny their humanity while continuing to take advantage of their labour. The fact-finding team finds reason to conclude that the decision to summarily “clean up” the Charan Khad area was taken to sidestep the comparatively humane provisions of the HP Slum Act (2005). The report also charges the MCD with violation of the Supreme Court ruling against evictions being carried out during the monsoons. This ruling in the Bombay pavement dwellers case is a landmark judgement affirms the right to shelter as a part of the Constitutional right to life and livelihood. The eviction also violates the guidelines laid down under international agreements to which India is a signatory.

The report has come down hard on the stigmatisation and labelling of the evicted community as “outsiders”, “dirty people”, “petty criminals” and “drug addicts” is unjustified. It points out that the Charan Khad residents are working people who have been providing their labour to the city, without any form of social or economic security. The fact-finding team has strongly condemned the prejudice and contempt displayed by some officials in their dealings with the evictees. “These individuals seem to have forgotten that, as public servants, they are duty bound to stand aside from social prejudice at least while acting in their official capacity” says the report.The fact finding team examined various public documents and has raisedserious questions about the mode of functioning of the newly-formed Municipal Corporation of Dharamsala, which has scored an early success in getting funding under the Smart City Mission. The report points out that the Smart City proposal was submitted and cleared almost immediately after the formation of the corporation, suggesting a hurried process based on weak data and an incomplete understanding of the needs and priorities of various segments of the population. The report calls on the authorities to provide immediate relief and redress to the evictees in rebuilding their lives.

Meanhwile, the affected people have formed a Charan Khad Basti Punarwas Samiti to dialogue with the administration on the rehabilitation. Close to 20 members of the Samiti met the DC and Joint Commissioner, MC Dharamsala to submit a memorandum asking to initiate proceedings of allotment of housing for the displaced. “The DC has directed the JC, MCD to examine the matter and both have assured some action. We will meet them next week to follow up”, said Nazuki Devi of Charan Khad Basti Punarwas Samiti.

Issued by:
Charan Khad Basti Punarwas Samiti
Kangra Citizens Rights Group

Link to the report
Memorandum

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