वन अधिकार कानून, 2006 के अन्तर्गत बड़सर पंचायत के 6 गांवों ने लगभग 5 हजार हेक्टेयर वन भूमि पर सामुहिक दावे आज (11 जूलाई 2017) एसडीएम पालमपूर को सौंपे। इस प्रक्रिया में राज्य स्तरीय संगठन हिमाचल वन अधिकार मंच जोकि प्रदेश में इस कानून को लागू करने के लिये प्रयासरत है, ने स्थानीय समुदाय को दावे भरने की प्रक्रिया में मदद की। वन अधिकार कानून 2006 वनों पर स्थानीय लोगों के निजी व सामुदायिक अधिकारों को कानूनी मान्यता देता है। मंच के कार्यकर्ता राजू भट्ट ने बताया, “वैसे तो इस कानून को लागू हुये करीब 10 साल हो गये हैं। लेकिन हिमाचल सरकार के डूल–मूल रवैये व लोगों में जानकारी के अभाव के कारण लोगों को इस कानून का फायदा नहीं मिल पाया है। जबकि राष्ट्र स्तर पर देखें तो त्रिपुरा जैसे छोटे राज्य में वहां की सरकार ने 1 लाख 20 हजार परिवारों को करीब डेड़ लाख एकड़ वन भूमि पर इस कानून के तहत अधिकार दिये हैं। अभी तक हिमाचल प्रदेश में मात्र चम्बा जिले में भरमौर तहसील के 7 गांवों को सामुदायिक अधिकार मिले हैं व डलहौजी में 53 परिवारों को निजी अधिकार दिये गये हैं”। मंच की कार्यकर्ता पावना कुमारी ने कहा, “कांगड़ा जिले में अभी तक 32 सामुदायिक दावे बैजनाथ तहसील में व 6 सामुदायिक दावे धर्मशाल तहसील में उपमंडल स्तर समिति को सौंपे गये हैं”। वन अधिकार कानून के तहत बनायी गयी जिला स्तरीय समिति की सदस्या व जिला परिषद सदस्या अनिता भट्ट ने कहा, “इन सामुदायिक दावों में स्थानीय लोगों ने वन भूमि में चराई का, टीडी का, जड़ी–बूटी को निकालने व बेचने का, जलाव लकड़ी लाने का, जलस्रोतों पर, सांस्कृतिक व धार्मिक स्थलों पर पारम्परिक उपयोगों को कानूनी मान्यता दिलवाने के लिये ये दावे सौंपे हैं। इसके साथ–साथ करीब 100 घूमंतू पशूपालक परिवारों ने अपने मौसमी चरागाहों व इन तक पहूंचने वाले रास्तों को भी कानूनी मान्यता दिलाने के लिये दावों की सूची में जोड़ा है”। बड़सर पंचायत के गांवों ने अपने उपयोग के जंगलों के संरक्षण व प्रबन्धन की स्वंय जिम्मेदारी लेने के लिये भी इस कानून के तहत दावा किया है। मंच के संयोजक अक्षय जसरौटिया ने बताया की “हिमाचल जैसे राज्य में जहां अधिकतर भूभाग वन भूमि है वहां यह कानून वनों की सुरक्षा व प्रबन्धन के लिये बहुत ही आवश्यक है”।
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