Excluding those with ‘illegal’ occupations from contesting Panchayat elections: An injustice

‘अवैध कब्जेदारों’ को पंचायती चुनाव प्रक्रिया से बाहर रखना भूमि हकदारों, छोटे किसानों व महिलाओं के साथ नाइंसाफी!

नियमों को रद्द कर वन अधिकार कानून का हो जल्द क्रियान्वयन – हिमाचल के जनसंगठनो कि मांग!

पंचायती राज व्यवस्था ऐसे तो विकेंद्रीकरण और लोकतांत्रिक व्यवस्था में जनता की भागीदारी सुनिश्चित करने की तरफ एक महत्वपूर्ण कदम है परन्तु कौन पंचायत में नेतृत्व दे सकते हैं और कौन नहीं – किनकी उम्मीदवारी वैध मानी जायेगी और किनकी नहीं इससे जुड़े कई नियम कानून ऐसे हैं जिस पर सरकार को पुनर्विचार करना चाहिए ताकि ग्रामीण क्षेत्रों के वंचित और अलग अलग तबके के समुदाय इस प्रक्रिया में सक्रिय रूप से जुड़ पायें | हिमाचल के सन्दर्भ में पिछले कुछ वर्षों से चुनाव में नामांकन के नियमों में ‘सरकारी ज़मीन पर अवैध कब्जाधारीयों’ की उम्मीदवारी को अमान्य किया गया है | इस बार भी सरकार द्वारा यह कदम उठाया गया है | नियम अनुसार अगर परिवार के मुखिया द्वारा कोई अवैध कब्ज़ा किया गया हो तो उस परिवार का कोई भी सदस्य चुनाव में खड़ा नही हो सकता- उस घर की महिलाओं व अन्य सदस्यों के प्रति अन्याय है | हम अलग अलग सामाजिक संगठन, कार्यकर्ता और जनता के प्रतिनिधियों की हैसियत से सरकार द्वारा उठाये जा रहे इस कदम को ले कर निम्न आपातियाँ दर्ज कराना चाहते हैं :-

  1. अवैध कब्ज़ा भू-सुधार कानूनों के आधे-अधूरे व निष्क्रिय क्रियान्वयन का नतीजा: हिमाचल राज्य जहां 90% जनता ग्रामीण क्षेत्रों में निवासरत है और अधिकतर लोग खेती बाड़ी पर निर्भर हैं वहाँ केवल 11% निजी भूमि और बाकी पूरी की पूरी ज़मीन सरकारी दर्ज होना, अवैध कब्जों जैसी व्यवस्था को जन्म देने का मुख्य कारण है| इस अनियमितता को बढ़ावा देते हैं प्रदेश के विभिन्न भूमि-सुधार कानून व उनमे हुए संशोधनों की निष्क्रियता व आधे-अधूरे क्रियान्वयन जो राज्य की सामाजिक-आर्थिक असामनता को दूर करने के लिए बनाये गये थे | इन सभी कानूनों व योजनाओं के क्रियान्वयन में इन कानूनों के बनने के पीछे के उद्देश्य की समझ का अभाव स्पष्ट दिखता है| बढती जनसंख्या को देखते हुए यह असंभव है कि जनता 11% भू-भाग में ही सिमट कर रहे – अपनी आजीविका कमाने और निवास के लिए हिमाचल की अधिकतर ग्रामीण जनता छोटे मोटे सरकारी वन भूमि पर पीढ़ियों से निर्भर रही है| लोगों के अधिभोग में रही इस भूमि को अवैध कब्ज़ा मानना व इन कब्जों की ज़िम्मेदारी पूर्ण रूप से लोगो पर डालना और ऐतिहासिक रूप से चलती आ रही सरकारी व्यवस्था जो इन कब्जों को बढ़ावा देती रही उसे अनदेखा करना, आज अन्यायपूर्ण होगा!
  1. छोटे किसान, वंचित समुदाय व महिलाएं सबसे अधिक प्रभावित: इस बार के पंचायत चुनावों में सरकार द्वारा बनाए गये कई कड़े नियमों से सबसे अधिक छोटे किसान, भूमिहीन, वंचित समुदाय व महिलाएं प्रभावित होंगे – अधिकतर कब्ज़े छोटे किसानों और वंचित समुदायों के हैं | पहले ही हिमाचल में औसत निजी ज़मीन का क्षेत्रफल 1 हेक्टेयर से कम है – हिमाचल में छोटे और सीमान्त किसानों की संख्या 87.95% है | जनसंख्या में 25% अनुसूचित जाति समाज के लोग हैं जो अधिकतर सीमान्त किसान हैं | यदि हिमाचल सरकार द्वारा हाई कोर्ट को सौंपी गयी ‘वन भूमि पर अवैध कब्जों की सूची’ देखें तो इससे भी स्पष्ट होता है कि 88.5% केस 10 बीघासे कम कब्जों के हैं और सिर्फ 11.5% केस 10 बीघासे अधिक कब्जों के हैं |
  1. वन अधिकार कानून, 2006 का उल्लंघन: वन अधिकार कानून की धारा 4(1) अनुसार अन्य कानूनों में कोई भी बात होते हुए केंद्र सरकार अनुसूचित जनजाति व अन्य परंपरागत वन निवासियों के धारा 3(1) में उल्लेखित अधिकारों (जिसमें वन भूमि पर निवास और अपनी आजीविका के लिए खेती को भी वन अधिकार माना गया है) को मान्यता देती है व उनमें निहित करती है | इससे यह स्पष्ट होता है कि जब तक वन अधिकार कानून के तहत लोगों के वन अधिकारों के अधिकार को मान्यता देने और उनमें निहित करने की प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती तब तक ऐसे भूमि के उपयोग को नाजायज़ कब्ज़ा कहना/मानना वन अधिकार कानून की धारा 4(1) का उल्लंघन है |

वन अधिकार कानून के तहत प्रदेश में अभी सैंकड़ो वन अधिकार दावे उपखंड व जिला प्रशासन के समक्ष लंबित हैं जिन पर कार्यवाही होना बाकी है | प्रदेश में वन अधिकार कानून को समझने के लिए प्रशिक्षण की कमी है जिसके कारण इस कानून के प्रति लोगों व प्रशासनिक अधिकारीयों के बीच जागरूकता का अभाव है – एक बहुत बड़ा कारण लोगों को उनके अधिकारों व उसकी जानकारी से वंचित करने का |

  1. राज्य सरकार की करनी व कथनी में अंतर: एक तरफ तो राज्य सरकार ने अवैध कब्जाधारियों के पंचायत चुनाव में खड़े होने पर रोक लगाई है और दूसरी तरफ सरकार द्वारा राजस्व रिकोर्ड के अपडेशन के लिए एक एक्सपर्ट कमिटी का गठन किया गया जिसका काम भूमि सुधार कानूनों में हुए पार्टीशन, म्युटेशन, डीमार्केशन और एंट्री में सुधार से जुड़े मुद्दों पर सुझाव देना है | न सिर्फ इस तरह कि कमिटी का गठन होना रेवेन्यू रिकार्ड्स में गड़बड़ियों को दर्शाता है बल्कि इस कमिटी द्वारा यह सामने लाना कि 94000 केस हाई कोर्ट में लंबित हैं क्योंकि नौतोड और भूमिहीनों को अलोट की गयी ज़मीन अभी भी राजस्व रेकॉर्डों में मल्कियत भूमि के रूप में दर्शाई नहीं गयी है – जिसके कारण लोगों कि भूमि अभी भी ‘नाजायज़ कब्ज़े’ के रूप में राजस्व जमाबंदियों में दर्ज हैं, इस बात की पुष्टि करता है | 2002 में भी कई मामलों के समाधान के लिए भूमि नियमतिकरण (रेग्युलरायीज़ेशन) निति बनाई गयी पर यह क्रियान्वित नहीं हो पायी |

उपरोक्त सभी बिन्दुओं से यह स्पष्ट है कि राज्य सरकार द्वारा पंचायत चुनावों में भागीदारी को ले कर बनाए गये नियमों पर अधिक सोच विचार नही किया गया | इन नियमों का लागू करना न सिर्फ वन अधिकार कानून का उल्लंघन करना होगा बल्कि समाज के वंचित समुदायों, छोटे किसानों और महिलाओं की स्थिति और अधिकारों पर सीधा वार भी है – जिसकी हम कड़ी निंदा करते हैं | यह बड़े आश्चर्य की बात है की एक तरफ तो सरकार लोगों को संवैधानिक अधिकार से वंचित करने वाले नियम बनाती है और दूसरी तरफ ज़मीनी गड़बड़ियों में सुधार के लिए कमिटियों का गठन करती है | हम, हिमाचल प्रदेश के सभी सामाजिक व जन संगठन सरकार से मांग करते हैं कि:-

  1. पंचायत चुनावों में भागीदारी को लेकर बनाए गये नियमों को जल्द से जल्द रद्द किया जाये क्योंकि यह नियम छोटे भूमिहीन लोगों के खिलाफ है और साथ ही वन अधिकार कानून की धारा 4(1) का उल्लंघन है |
  2. जिनके भी नौतोड और अलोट की गयी जमीन के केसेस लंबित हैं उनको जल्द से जल्द निपटाते हुए मालिकाना हक दिया जाये |
  3. प्रदेश में वन अधिकार कानून के सक्रीय क्रियान्वयन की ओर सकारात्मक व ठोस कदम उठाए जाएँ व सभी जिलों में अधिक से अधिक प्रशिक्षण और उसके जुड़ी सामग्री की व्यवस्था की जाए|
  4. वन अधिकार क़ानून के तहत प्रशासन के पास लंबित पड़े वन अधिकार दावों पर शीघ्र निर्णय लिया जाए ताकि लोगों को कानून के तहत अपने वन अधिकार प्राप्त हों|

हस्ताक्षरकर्ता :-

अनीता, जिला परिषद सदस्य, कांगड़ा

एकल नारी शक्ति संगठन, हिमाचल

घुमंतू पशुपालक महासभा हिमाचल, चंबा इकाई

हिमालय बचाओ समिति, चंबा

हिमधरा पर्यावरण समूह, पालमपुर

हिमलोक जाग्रति मंच, किन्नौर

जन जातीय महिला कल्याण समिति, किन्नौर

नेकराम शर्मा, सामाजिक कार्यकर्ता मंडी

पर्वतीय महिला अधिकार मंच, हिमाचल प्रदेश

सेव लाहौल स्पिति, लाहौल

श्याम सिंह चौहान, जिला परिषद सदस्य मंडी

सिरमौर वन अधिकार मंच, सिरमौर

स्पिति सिविल सोसाइटी, स्पिति

सूत्रा, सोलन

 Media Coverage

Withdraw Criteria of No ‘Illegal Land Occupations’ for Contesting Himachal’s Panchayat Elections: Activists Write to Govt

https://indianexpress.com/article/india/himachal-pradesh-remove-unjust-criteria-for-contesting-pri-polls-various-groups-demand-7115715/

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