लेख -हिमाचल प्रदेश में वन अधिकार क़ानून का हाल बेहाल क्यों है

हिमशी सिंह द्वारा लिखित ,

द वायर द्वारा प्रकाशित किया गया है ।

दिसंबर, 2021 में वन अधिकार क़ानून को पारित हुए 15 साल पूरे हुए हैं, हालांकि अब भी वन निवासियों को अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है. आज जहां पूरे भारत में 20 लाख से अधिक वन अधिकार दावे मंज़ूर किए गए, उनमें हिमाचल प्रदेश का योगदान केवल 169 है, जो प्रदेश को इस क़ानून के क्रियान्वयन में सबसे पिछड़ा राज्य बनाता है.

23 नवंबर 2021 को ओडिशा के नायागढ़ जिले के सुरकाबाड़ी गांव में उत्साह का माहौल था. ढोल-मंजीरों के साथ, कदम से कदम मिलाकर पुरुष और महिलाओं कि एक बहुत बड़ी टोली नाचते गाते एक विशाल पंडाल की तरफ बढ़ रही थी.

उस जमावड़े में एक अलग ऊर्जा थी, जश्न था संघर्ष का, ख़ुशी थी जीत की और अपने जल, जंगल, ज़मीन पर हकदार का दर्जा पाने का सुकून भी. लोक नृत्य करते सुरकाबाड़ी गांव के वन निवासियों को अन्य 23 गांव समेत ऐतिहासिक वन अधिकार कानून (एफआरए) 2006 के तहत  सामूहिक वन अधिकार के पट्टे मिलने जा रहे थे…

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Post Author: Admin