वन संरक्षण कानून में प्रस्तावित नियम 2022– हिमालय व लोकतंत्र के लिए विनाशकारी !

प्रेस विज्ञप्ति:
वन संरक्षण कानून में प्रस्तावित नियम 2022 – हिमालय व लोकतंत्र के लिए विनाशकारी !

8 हिमालयी राज्यों के 60 से अधिक संगठनो और पर्यावरणविदों ने केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय को भेजा ज्ञापन

हिमालयी क्षेत्र के राज्यों के 60 से अधिक पर्यावरण समूहों, संगठनों, प्रख्यात विचारकों, बुद्धजीवियों और कार्यकर्ताओं ने हिमालयी क्षेत्र में बढ़ते पारिस्थितिकीय संकट और पर्यावरणीय दुर्गति को रोकने, जन जातीय समूह व वन निवासियों के अधिकारों को सुनिश्चित करने और केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) द्वारा वन संरक्षण कानून में प्रस्तावित नियमों को वापस लेने की मांग की है. मंत्रालय द्वारा यह विवादास्पद कदम कंपनियों और विकास परियोजनाओं को मजबूती से आगे बढ़ाने और ग्राम सभाओं की NOC को रोड़ा मानते हुए दरकिनार करने का प्रयास है जिसका पुरजोर विरोध हुआ है.

आज हिमालय में जलवायु परिवर्तन संबंधित आपदाओं, वनों के दोहन, विलुप्त होती जैव विविधता, भुसख्लन, नदियों के सूखने, ख़तम होते भूजल स्रोतों, ग्लेशियरों के पिघलने, पहाड़ों के खोखले किये जाने व ठोस और संकटमय कचरे से संबंधित प्रदूषण जैसी समस्याएं आम हैं और यहाँ कि पर्यावरणीय स्थिति अत्यंत सवेंदनशील है। पहले से ही हिमालय क्षेत्र पारिस्थितकीय और भौगोलिक रूप से अत्यंत नाजुक होने के लिए जाना जाता है, जहां प्रकृति से छोटी सी छेड़छाड़ भी व्यापक असर डालती है जिसका लाखों-करोड़ों लोगों के जीवन पर तीव्र प्रभाव पड़ता है।

पिछले कुछ सालों में पर्यावरणीय मानदंडों और सामाजिक जवाबदेही के प्रावधानों के बढ़ते उल्लंघन जिसमे से एक रही पर्यावरणीय प्रभाव आकलन प्रक्रिया में कम होती लोकतांत्रिक जन-भागीदारी ने इस स्थिति को और गंभीर कर दिया है। ऐसे में वन संरक्षण कानून के नियमो में 2017 में हुआ संशोधन जिसमें वन अधिकार कानून के तहत NOC लेने का प्रावधान जोड़ा गया था, पर्यावरण मंत्रालय द्वारा लिया गया एक आशारूपी कदम था | लेकिन इस बार के प्रस्तावित नियमों के अनुसार परियोजना के दूसरे चरण के बाद ग्राम सभा कि NOC लेने का प्रावधान न सिर्फ देश कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर सवाल उठता है बल्कि मंत्रालयों में बैठे नीति निर्माताओं कि मंशा और मंत्रालयों के अस्तित्व पर भी सवाल खड़ा करता है|

हिमाचल प्रदेश के जनजातीय जिले किन्नौर में चल रहे नों मीन्स नों कैंपेन से जुड़े सुंदर नेगी कहते हैं कि “एक तरफ देश का राष्ट्रपति एक आदिवासी को चुना गया और दूसरी तरफ आदिवासियों के अधिकारों को इस तरह से कमज़ोर किया जा रहा है | इसी तरह से चलता रहा तो ट्राइबल क्षेत्र सिर्फ मानचित्र पर ही नज़र आएगा और हिमाचल का हमारा छोटा सा ट्राइबल क्षेत्र जो अपनी संकृति, पर्यावरण, बोली, परंपरा, और अपनी पहचान को बड़ी-2 कंपनियों को भेंट चढ़ने से नहीं रोक पाएगा। अंततः हमारा देश और प्रदेश अपने प्राकृतिक संसाधनों और मानव समाज के संतुलन को खो बैठेगा जो सबके लिए बहुत बड़ा नुकसान साबित होगा। हमारे क्षेत्र कि नदियां तो टनलों में नजर आएंगी, प्राकृतिक आपदाएं बढ़ेंगी और सीमांत इलाकों में लोगों में रोष का माहोल रहेगा” |

डॉ. राजा मुज़फ्फर भट, संस्थापक एवं अध्यक्ष, जम्मू कश्मीर RTI आंदोलन का कहना है कि “वन अधिकार अधिनियम लागू होने के 13 साल बाद इसे जम्मू कश्मीर में लागू किया गया था और वन संरक्षण कानून में संशोधन करके जम्मू कश्मीर के आदिवासी और अन्य पारंपरिक वन निवासियों को फिर से एफआरए के तहत उनके अधिकारों से वंचित किया जाएगा”|

“नए FCA नियम 2022 अरुणाचल प्रदेश में आदिवासी समाज द्वारा हो रहे बड़े बांध विरोधी आंदोलन के सामने खतरा है क्योंकि ये लोगों से पहले राज्य कि सहमति को प्राथमिकता देते है | चूंकि राज्य सरकार द्वारा राज्य में जल विद्युत कंपनियों के साथ 140 से अधिक समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए गए थे, इसलिए एफसीए नियम राज्य द्वारा जमीनी स्तर पर लोगों की आवाज का प्रतिनिधित्व करने का कोई अवसर नहीं देते हैं। इन परियोजनाओं के माध्यम से हमारे राज्य पर भारी सांस्कृतिक और पारिस्थितिक आपदा मंडरा रही है, जिससे असम और बांग्लादेश के निचले इलाकों को भी खतरा है।” अरुणाचल प्रदेश के दिबांग रेजिस्टेंस ग्रुप के एक सदस्य ने कहा |

इस संकट के मद्देनज़र अरुणाचल प्रदेश, असम, उत्तराखंड, जम्मू कश्मीर, हिमाचल, सिक्किम, मेघालय और मणिपुर के हस्ताक्षरकर्ताओं ने वन संरक्षण कानून- प्रस्तावित नियम 2022 को तत्काल रद्ध करने की मांग की है। वे आज के वन प्रबंधन और शासन प्रणाली के टॉप-डाउन दृष्टिकोण से एक अधिक समावेशी, भागीदारी और ‘न्यायपूर्ण’ वन शासन की ओर बढ़ते बदलाव की मांग करते हैं – जिसे केवल एफआरए और इसी तरह के कानूनों / विनियमों के कार्यान्वयन के बाद ही शुरू किया जा सकता है।

ज्ञापन की प्रति संलग्न है

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